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E-ISSN: 2582-8010     Impact Factor: 9.56

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बारह पंथी : सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का एक ऐतिहासिक विश्लेषण

Author(s) REKHA TAILOR
Country India
Abstract बारह पंथी’ नाथ पंथ के अंतर्गत आने वाली 12 शाखाओं का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण समूह है। नाथ पंथ एक प्राचीन संत सम्प्रदाय है, जो शिव के उपासक माने जाते हैं। इस पंथ का प्रारंभ आदि देव शिव से जुड़ा हुआ है और इसके अनुयायी शिव की आराधना में विश्वास रखते हैं। नाथ पंथ की साधना पद्धतियाँ मुख्य रूप से हठयोग पर आधारित हैं, जिनका उद्देश्य न केवल आत्म-साक्षात्कार करना है, बल्कि समाज कल्याण की दिशा में भी योगदान देना है। गोरखनाथ जी, जिन्होंने नाथ पंथ को एक सशक्त पहचान दिलाई, ने इसे संगठित करते हुए इसे बारह शाखाओं में विभाजित किया। प्रत्येक शाखा का एक विशिष्ट महात्मा और एक केंद्र या स्थान होता है, जिसे तीर्थ माना जाता है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में इन स्थानों की सामाजिक और सांस्कृतिक भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। इन शाखाओं के अनुयायी अपने-अपने गुरुओं को आदि प्रवर्तक मानते हुए उनकी पूजा करते हैं और उनकी उपदेशों का पालन करते हैं। नाथ पंथ की बारह शाखाओं में छह शाखाएँ सीधे तौर पर शिव से जुड़ी हुई हैं, जबकि छह शाखाएँ गोरखनाथ से संबंधित हैं। गोरखनाथ जी के योगदान के कारण उनकी शाखाओं में विशेष स्थान और पहचान प्राप्त है। गोरखनाथ ने न केवल नाथ पंथ को धार्मिक और साधनात्मक दृष्टि से सशक्त किया, बल्कि उन्होंने समाज में बदलाव की दिशा में भी कई महत्वपूर्ण पहल कीं।
बारह पंथी शाखाएं भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हुई हैं और इनके अनुयायी विभिन्न स्थानों पर इन शाखाओं के सिद्धांतों का पालन करते हुए अपनी साधना करते हैं। ये शाखाएं न केवल धार्मिक और तात्त्विक विचारों को फैलाती हैं, बल्कि समाज में समरसता, भाईचारे और मानवता को प्रोत्साहित करने के लिए भी सक्रिय रूप से कार्य करती हैं।
नाथ पंथ और उसकी बारह पंथी शाखाओं का भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य में विशेष स्थान है, और यह पंथ समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समभाव और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने में सहायक रहा है। इन शाखाओं के माध्यम से यह सिद्धांत फैलाया गया कि धर्म न केवल व्यक्तिगत मोक्ष की प्राप्ति का साधन है, बल्कि समाज की सेवा और कल्याण भी इसका महत्वपूर्ण भाग है।

मुख्य शब्द (Keywords): नाथ पंथ, बारह पंथी, गोरखनाथ, शिव, हठयोग, आत्म साक्षात्कार, समाज कल्याण, धार्मिक शाखाएं संत सम्प्रदाय, गोरखनाथ के अनुयायी, नाथ सम्प्रदाय, तीर्थ स्थल, साधना पद्धति, धार्मिक और तात्त्विक विचार, समरसता

प्रस्तावना
‘हठ प्रदीपिका’ के लेखक स्वात्माराम और पहले टीकाकार ब्रह्मानंद ने 'दृढ़ प्रदिपिका ज्योत्सना' के पहले उपदेश के श्लोक 5 से 9 में 44 सिद्ध नाथ योगियों का उल्लेख किया है, जिनमें पहलानाथ को प्रमुख माना गया है। ये पहलानाथ आदिनाथ शिव के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिन्होंने हठयोग की विधि का ज्ञान प्रदान किया। यह नाथ ग्रंथ इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि आदिनाथ शिव ने ही हठयोग का प्रवर्तन किया। नाथ सिद्धों का उल्लेख आयुर्वेद ग्रंथों में भी किया गया है, जहां इन्हें रसायन चिकित्सा के जनक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा, तंत्र ग्रंथ 'शावर तंत्र' में कपलिकों के 13 आचार्यों का उल्लेख मिलता है, और 'पोडस नित्य तंत्र' में नाथों को तंत्र के प्रचारक के रूप में स्थापित किया गया है। “बारह पंथी”, नाथ सम्प्रदाय की बारह शाखाओं का संगठित रूप है, जिसे गोरखनाथ जी ने स्थापित किया था। इन बारह शाखाओं को 'बारह पंथ' कहा जाता है। यह मान्यता है कि जब गोरखनाथ जी ने नाथ पंथ को संगठित किया, तो उन्होंने इसके लिए बारह शाखाएँ स्थापित की, जिनमें प्रत्येक शाखा का अपना विशिष्ट स्थान और उद्देश्य था। गोरखनाथ जी की इन्हीं शाखाओं का उद्दीपन और प्रचार आज भी जारी है।
गोरखनाथ द्वारा स्थापित बारह शाखाओं में प्रमुख रूप से निम्नलिखित नामों का उल्लेख किया जाता है:
1. सत्यनाथी
2. धर्मनाथी
3. बैराग
4. माननाथी
5. कन्हड
6. धनपंथ
7. रामपंथ
8. आईपंथ
9. नटेश्वरी
10. पागलपंथ
11. कपिलानी
12. गंगानाथी
नाथ पंथ एक शैव संत संप्रदाय है, जो शिव की उपासना करता है। नाथ पंथ की उत्पत्ति शिव के साथ जुड़ी हुई है और यह उतना ही प्राचीन है जितना शिव स्वयं। आदिनाथ शिव की आराधना को नाथ पंथ की प्राचीनता का प्रमाण माना जाता है। नाथ पंथ की प्राचीनता का विस्तार करते हुए यह कहा जा सकता है कि यह सम्प्रदाय समय के साथ विकसित हुआ, जहां मत्स्येन्द्रनाथ ने न केवल गोरखनाथ को अपना शिष्य बनाया, बल्कि यह भी माना कि गोरखनाथ नाथ पंथ के प्रवर्तक होंगे। गोरखनाथ जी ने अपने समय के सामाजिक और धार्मिक विकृतियों का विरोध करते हुए नाथ पंथ का प्रचार किया और उसे समाज में फैलाया। उनके इस प्रयास ने नाथ पंथ को एक नई दिशा दी और यह सम्प्रदाय आज भी प्रभावी है।

बारह पंथियों का इतिहास
नाथ पंथ को बारह पंथियों में विभाजित करने की परंपरा का आरंभ गोरखनाथ जी ने किया था। गोरखनाथ ने नाथ पंथ को संगठित करते हुए उसे 12 शाखाओं में विभक्त कर दिया था, जिससे प्रत्येक शाखा का अपना विशिष्ट स्थान और महात्मा था। हर पंथ अपने प्रवर्तक को पूजता है और उसी के अनुसार साधना की जाती है। माना जाता है कि नाथ पंथियों के बीच के मतभेद कभी-कभी विवादों का रूप ले लेते थे, इसीलिए गोरखनाथ ने इन मतभेदों को समाप्त करने के लिए पंथ को 12 शाखाओं में विभक्त किया था।
गोरखनाथ जी ने 12 शाखाओं के बीच मतभेदों को सुलझाने के लिए एक साझा पंथ का निर्माण किया, जिसमें शिव द्वारा स्थापित 6 पंथ और गोरखनाथ द्वारा स्थापित 6 पंथों का समावेश किया गया। यह पंथ आज '12 पंथी' के रूप में जाना जाता है। यह विभाजन इस प्रकार था:
1. भुज के कठरनाथ
2. पेशावर और रोहतक के पागलनाथ
3. अफगानिस्तान के रावल
4. मंख या पंक
5. भारवाड़ के वन
6. गोपाल या राम के पंथ
7. आई पंथ के चोलीनाथ
8. हेठ नाथ
9. चाद नाथ कपियानी
10. भारवाड़ का बैराग पंथ
11. धजनाथ महावीर
12. जयपुर के पावनाथ
यह मान्यता है कि पहले 6 पंथ शिव द्वारा स्थापित थे और बाद में गोरखनाथ जी ने 6 पंथों की स्थापना की। इन दोनों को मिलाकर 12 पंथियों की शाखा का गठन हुआ, जिसे नाथ पंथ कहा जाता है।
नाथ पंथ में दो प्रकार के साधु होते हैं:
1. कनफटा साधु: जो अपने कानों में एक विशेष प्रकार का कुण्डल या आभूषण धारण करते हैं, उन्हें कनफटा साधु कहा जाता है।
2. ओघड़ साधु: जो इस प्रकार की मुद्रा नहीं धारण करते, उन्हें ओघड़ साधु कहा जाता है।
नाथ पंथ में कनफटा साधुओं को ओघड़ साधुओं से उच्च माना जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि कनफटा साधु ने ब्रह्म के साक्षात्कार को प्राप्त किया है।
नाथ पंथ का विस्तार केवल भारत तक ही सीमित नहीं था, बल्कि नेपाल, तिब्बत, पाकिस्तान और मक्का-मदीना तक भी इसका प्रभाव था। गोरखनाथ जी ने नेपाल और तिब्बत में तपस्या की थी, और चौरंगीनाथ जी ने मक्का-मदीना में अपना तप किया। इन देशों में नाथ पंथ के मठ और साधना स्थल आज भी विद्यमान हैं।
भारत में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में नाथ पंथ के प्रमुख साधना स्थल हैं, जैसे हरिद्वार और गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर। इसके अलावा, पश्चिमी भारत में गोरखनाथ शाखा के साधुओं को धर्मनाथी और कनफटा गोरखनाथी के नाम से जाना जाता है।
नाथ पंथ को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे योगी सम्प्रदाय, सिद्ध सम्प्रदाय, कौल मत, और अवधूत मत। इन सभी नामों में नाथ पंथ का एक ही तात्पर्य है, हालांकि अवधूत शब्द का अर्थ "माया और स्त्री रहित" लिया जाता है, जो इस पंथ के अनुयायियों के साधना के तरीके को दर्शाता है। यह पंथ समय के साथ विभक्त हुआ और 12 शाखाओं के रूप में अस्तित्व में आया। इन शाखाओं में प्रमुख हैं:
1. सतनाथ पंथ: जिसका प्रवर्तक ब्रह्मा जी को माना जाता है।
2. रामनाथ पंथ: श्री रामचन्द्र जी को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
3. धर्मनाथ पंथ: धर्मराज युधिष्ठिर को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
4. लक्षमणनाथ पंथ: लक्ष्मण को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
5. दरियानाथ पंथ: गणेश जी को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
6. गंगानाथ पंथ: भीष्म पितामह को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
7. वैराग पंथ: भर्तृहरि जी को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
8. रावल या माननाथ पंथ: गोपीचन्द जी को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
9. जालंघरिया पंथ/पागल पंथ: चौरगीनाथ को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
10. आई पंथ: भगवती बिमला देवी को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
11. कपिलानी पंथ: कपिल मुनि को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
12. धजनाथ पंथ: हनुमान जी को इस पंथ का प्रवर्तक माना जाता है।
इन 12 पंथों के अनुयायी भारत सहित अन्य देशों में फैले हुए हैं, और प्रत्येक पंथ का अपना धार्मिक और साधना स्थल है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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Keywords .
Field Arts
Published In Volume 6, Issue 1, January 2025
Published On 2025-01-27
Cite This बारह पंथी : सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का एक ऐतिहासिक विश्लेषण - REKHA TAILOR - IJLRP Volume 6, Issue 1, January 2025.

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