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सूफी काव्य की प्रवृत्तियाँ: पारंपरिक और आधुनिक दृष्टिकोण

Author(s) सोमदत्त शर्मा
Country India
Abstract सूफी प्रेमाख्यान काव्य परंपरा मध्यकालीन हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण काव्यधारा मानी जाती है। सूफी शब्द की व्युत्पत्ति पर विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि मदीना में मस्जिद के सामने एक 'सुफ्फा' नामक स्थान था, जहां पर फकीर और साधु बैठते थे, और उन्हें सूफी कहा जाता था। एक अन्य मत के अनुसार, 'सूफी' शब्द 'स्फ' से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है सदाचार और सद्व्यवहार के कारण अग्रिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति। तीसरे मत के अनुसार, सूफी शब्द 'सोफिया' का रूपांतरण है, जो ज्ञान प्राप्त व्यक्ति को सूचित करता है। कुछ विद्वान इसे 'सफा' शब्द से जोड़ते हैं, जिसका अर्थ है शुद्धता और पवित्रता। इसके अतिरिक्त, एक विचारधारा यह भी है कि 'सूफी' शब्द 'सूफ' (ऊन) से उत्पन्न हुआ है, क्योंकि सूफी लोग लंबी ऊनी चादर पहनते थे।
इन विभिन्न मतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सूफी शब्द उन व्यक्तियों को संदर्भित करता है जो ऊनी कपड़े पहनते हुए साधनापूर्ण जीवन जीते थे और धार्मिकता में अग्रिम पंक्ति में खड़े होने के अधिकारी थे।
सूफी मत इस्लाम धर्म की शरीयत के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न हुआ था और इसे इस्लाम का एक प्रमुख अंग माना जाता है। सूफी मत की जड़ें शामी जातियों की आदिम प्रवृत्तियों में पाई जाती हैं, जो पहले इसके विरोधी थे। शामी जातियों में विराग की भावना मसीह के अवतार के साथ जागी थी, परंतु धीरे-धीरे प्रणय-भावना इतनी प्रबल हुई कि मसीह को 'दूल्हा' और उनके भक्तों को 'दुल्हिन' कहा जाने लगा। यह माना जाता है कि सूफी मत का आरंभ आदम में बीज रूप में हुआ था, फिर नूर में अंकुरित हुआ, इब्राहिम में विकसित हुआ, मूसा में परिपक्व हुआ और मसीह में परिपाक के बाद, मुहम्मद साहब में इसका पूर्ण रूप पाया। प्रेम और संगीत के साथ-साथ सूफियों के अधिकांश लक्षण मुहम्मद साहब में स्पष्ट रूप से देखे जाते हैं।
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि सूफी मत का पूर्ण विकास विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक घटनाओं से प्रभावित होकर हुआ, और इसका मुख्य उद्देश्य आत्मिक शुद्धता और प्रेम की स्थापना था।
बीज – शब्दः सूफी प्रेमाख्यान, सूफी मत, स्वतन्त्र विकास, आध्यात्मिक, में परमात्मा की प्राप्तिA

शोध - सार
भारत में सूफी मत का प्रचार 12वीं शताब्दी में प्रसिद्ध सूफी अल्हुज्विरी के आगमन काल से माना जाता है। भारत में सूफी मत चितिया, कादरी, सुहरावर्दी एवं नक्ाबंदी सम्प्रदायों के रूप में प्रचलित हुआ। इन सबमें प्रसिद्ध चितिया सम्प्रदाय हुआ। ख्वाजा मुईनद्दीन इस सम्प्रदाय की सातवीं पीढ़ी में हुए जिन्होंने भारत में सूफीमत का प्रचार किया। सूफी मत पर सबसे अधिक प्रभाव भारतीय वेदांत का पड़ा, जिससे सूफी मत ने अपना स्वतन्त्र विकास किया। दूसरा प्रभाव हठयोगियों का पड़ा, जिससे सूफियों ने प्राणायाम आदि की शिक्षा प्राप्त की।
सूफी काव्य परम्परा सूफी मत पर बौद्ध धर्म और वेदान्त का गहरा प्रभाव पड़ा है। सूफी सन्तों ने 7-8वीं शताब्दी में भारत में इस्लाम का प्रचार आरम्भ कर दिया था। इन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों के मतभेदों को दूर करते हुए उनमें आपसी एकता स्थापित करने का प्रयास किया। जायसी, कुतुबन, कहरनामा, मंझन, उसमान, मुल्लादाऊद, कासिमगाह, शेख नबी आदि कवि सूफी काव्य परम्परा के प्रमुख कवि है। सूफी कवियों ने अपनी रचनाओं में भारतीय लोक कथाओं को लेकर इस्लाम व सूफी मत के मूल सिद्धान्तों का विवेचन किया है। मुल्ला दाऊद सूफी परम्परा के सबसे प्राचीन कवि है। इनकी रचना 'चन्दायन' हिन्दी का प्रथम सूफी काव्य माना जाता है। रंजन की 'प्रमवन जीव निरंजन' हिन्दी की विख्यात रचना है। कुतुबन की 'मृगावती', मंान की 'मधुमालती', उसमान की 'चित्रावली', शेख नबी की 'ज्ञानवती', कासिम ॥ह की 'हंस जवाहिर', नूर मुहम्मद की इन्द्रावती', जलालुद्दीन का 'जमाल पच्चीसी' ग्रन्थ, जटमल ने 'गोरा बादल की बात' व 'प्रमलता चौपाई' नामक दो ग्रन्थ लिखे। नसीर की 'प्रमदर्पण', प्रमी की प्रम परकास', फाजिल"॥ह की प्रम रतन' आदि उल्लेखनीय काव्य रचनाएँ हैं। जायसी इस काव्यधारा के ही नहीं अपितु हिन्दी साहित्य के महान कवि है। मलिक मोहम्मद जायसी ने शेर"गाह के शासन काल में अपनी रचनाओं का सृजन किया। ये सूफी फकीर शेख मोहिदी के शिष्य थे। जायसी का जन्म सम्वत् 1521 के आसपास और मृत्यु सम्वत् 1599 में मानी जाती है। 'प‌द्मावत' 'अखरावट', 'कहरनामा', 'चित्ररेखा', 'आखिरी-कलाम', 'मसलानामा' आदि जायसी की प्रमुख रचनाएँ है। 'प‌द्मावत' जायसी जी की कीर्ति का आधार स्तम्भ है। प‌द्मावत' के पूर्वार्द्ध में व्यक्ति पक्ष है परन्तु उत्तरार्द्ध में लोकपक्ष आ गया है। इनका स्थान हिन्दी के सूफी कवियों में सर्वोपरि है। कवित्व-गुण और भाषा की दृष्टि से जायसी में अन्य सूफी सन्तों से अधिक श्रेष्ठता है। जायसी ने 'पदमावत' की प्रमकथा में कल्पना के साथ ऐतिहासकता का भी मिश्रण किया है। इसमें लौकिक-प्रम के आधार पर आध्यात्मिक प्रम की व्यंजना हुई है। इनके रहस्यवाद की आधारगिला भारतीय 'वदान्त की अद्वैत भावना है'। इनका विरह वर्णन हिन्दी साहित्य में अद्वितीय है। 'प‌द्मावत' में राजा रतनसेन की विरह-द"गा। का वर्णन करके अलौकिक प्रम की पीर' का संकेत प्रस्तुत किया है। सूफी प्रम-काव्य परम्परा का पूर्ण परिपाक जायसी जी की रचनाओं में देखने को मिलता है।
Keywords .
Field Arts
Published In Volume 6, Issue 1, January 2025
Published On 2025-01-27
Cite This सूफी काव्य की प्रवृत्तियाँ: पारंपरिक और आधुनिक दृष्टिकोण - सोमदत्त शर्मा - IJLRP Volume 6, Issue 1, January 2025.

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