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E-ISSN: 2582-8010
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Volume 6 Issue 2
February 2025
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साहित्य में संवेदना एवं संस्कृति
Author(s) | डॉ. सम्पूर्णानन्द गौतम |
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Country | India |
Abstract | साहित्यकार चूंकि सहृदय एवं सामाजिक होता है। यही कारण है कि वह अपने आस पास के वातावरण से ही विषय वस्तु का चयन कर लेता है साहित्यकार का लक्ष्य सदैव साहित्य एवं समाज के विविध पक्षों को रेखांकित करना है इस परंपरा में वह समाज एवं जीवन की सभी घटनाओं, परिस्थितियों का पुनर्मल्यांकन करता है उपन्यासकार अपने संवेदशील मन में उन समस्त परिस्थितियों एवं प्रवृत्तियों का अध्ययन करता है जिनमें साहित्य और संवदेना एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं समाज की गतिविधियाँ संवदेना से प्रस्फुटित होकर साहित्य में परिवर्तित होती है। साहित्यकार समाज से विलग नहीं हो सकता है वह सदैव अपनी रचना के पात्र, कथानक, वातावरण, भाषा, शैली, उद्देश्य सभी तत्वों को इसी समाज में खोजने का प्रयास करता है यह धु्रव सत्य है कि साहित्यकार अपने युग के प्रति संवेदनशील रहकर साहित्य रचना में प्रवृत्त होता है ‘‘साहित्यकारों की संवेदना युग विशेष की समकालीन परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करती है।’’25 साहित्यकार का दायित्व होता है कि वह समाज से प्राप्त तथ्यों एवं यथार्थ का पुनर्निरीक्षण कर उन्हें सत्यापित करता हुआ अपनी कल्पना एवं मौलिक प्रतिभा के साथ उन्हें आदर्श रूप में व्याख्यायित करे मुकुन्द द्विवेदी ने इस संदर्भ में कहा है- ‘‘जब साहित्यकार किसी यथार्थ को अभिव्यक्त करता है तो उस यथार्थ को एक विशेष सृजनात्मक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। और इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद साहित्यकार उस यथार्थ को एक विशिष्ट अर्थ प्रदान करता है जो किन्हीं अंशों में वस्तुगत यथार्थ से भिन्न होता है। इस भिन्नता में ही साहित्य का अपना सत्य अनुस्यूत होता है। |
Keywords | . |
Field | Arts |
Published In | Volume 6, Issue 1, January 2025 |
Published On | 2025-01-20 |
Cite This | साहित्य में संवेदना एवं संस्कृति - डॉ. सम्पूर्णानन्द गौतम - IJLRP Volume 6, Issue 1, January 2025. |
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10.70528/IJLRP
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